हम जैसे पागल बहुतेरे फिरते हैं

  - SALIM RAZA REWA

हम जैसे पागल बहुतेरे फिरते हैं
आप भला क्यूँ बाल बिखेरे फिरते हैं 

काँधों पर ज़ुल्फ़ें ऐसे बल खाती हैं 
जैसे लेकर साँप सपेरे फिरते हैं 

चाँद -सितारे क्यूँ मुझसे पंगा लेकर 
मेरे पीछे डेरे - डेरे फिरते हैं 

ख़ुशियाँ मुझको ढूँढ रही हैं गलियों में 
पर ग़म हैं जो घेरे - घेरे फिरते हैं

वो जाने कब उनके करम की बारिश हो
और न जाने कब दिन मेरे फिरते है

  - SALIM RAZA REWA

More by SALIM RAZA REWA

As you were reading Shayari by SALIM RAZA REWA

Similar Writers

our suggestion based on SALIM RAZA REWA

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari