हम जैसे पागल बहुतेरे फिरते हैं
आप भला क्यूँ बाल बिखेरे फिरते हैं
काँधों पर ज़ुल्फ़ें ऐसे बल खाती हैं
जैसे लेकर साँप सपेरे फिरते हैं
चाँद -सितारे क्यूँ मुझसे पंगा लेकर
मेरे पीछे डेरे - डेरे फिरते हैं
ख़ुशियाँ मुझको ढूँढ रही हैं गलियों में
पर ग़म हैं जो घेरे - घेरे फिरते हैं
वो जाने कब उनके करम की बारिश हो
और न जाने कब दिन मेरे फिरते है
As you were reading Shayari by SALIM RAZA REWA
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