हर ख़्वाहिशों को हमने ठिकाने लगा दिया - SALIM RAZA REWA

हर ख़्वाहिशों को हमने ठिकाने लगा दिया
मजबूरियों की इस तरह हस्ती मिटा दिया

हमने हर-इक उमीद का पुतला जला दिया
दुश्वारियों को पाँव के नीचे दबा दिया

 
मेरी तमाम उँगलियाँ घायल तो हो गईं

लेकिन तुम्हारी याद का नक़्शा मिटा दिया
 

मैंने तमाम छाँव ग़रीबों में बाँट दी
और ये किया कि धूप को पागल बना दिया

 
उसके हसीं लिबास पे इक दाग़ क्या लगा

सारा  ग़ुरूर ख़ाक में उसका मिला दिया
 

जो  ज़ख़्म खा के भी रहा है आपका सदा
उस दिल पे फिर से आपने ख़ंजर चला दिया

 
उसने निभाई ख़ूब मेरी दोस्ती रज़ा

इल्ज़ाम-ए-क़त्ल-ए-यार मुझी पर लगा दिया

- SALIM RAZA REWA
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