नश्शा नहीं सुरूर नहीं बे-ख़ुदी नहीं
उसके बग़ैर ज़िन्दगी ये ज़िन्दगी नहीं
वो क्या गया कि रौनक-ए-महफ़िल चली गई
जलते तो हैं चराग़ मगर रौशनी नहीं
चैन-ओ-सुकून भी गया होश-ओ-हवास भी
कैसे कहें कि उनकी ये जादूगरी नहीं
राह-ए-वफ़ा में ठोकरें खा कर पता चला
मुझ में कमी है यार में कोई कमी नहीं
माँ बाप के ही दम से सभी का वजूद है
उनसे जहाँ में कोई भी शय क़ीमती नहीं
As you were reading Shayari by SALIM RAZA REWA
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