फ़र्ज़ कामों की तरह तुझको अता करता हूँ
मैं नमाज़ों में तिरा नाम जपा करता हूँ
मैं उसूलों की इमारत से बना हूँ आख़िर
शौक़ दुनिया से ज़रा हट के रखा करता हूँ
क़ीमती चीज़ ज़मीं पर गिरे अच्छा तो नहीं
उसके अश्कों को हथेली में लिया करता हूँ
जिसको ताबीज़ बना कर के ज़माना पहने
उसकी तस्वीर निगाहों में रखा करता हूँ
ऐ ख़ुदा डाल दे झोली में मिरे उसको तू
जिसके ख़ातिर मैं तहज्जुद भी पढ़ा करता हूँ
मुझको दुनिया की किसी शय से मोहब्बत ही नहीं
तेरी हसरत के लिए रब से लड़ा करता हूँ
मैं फ़क़त तुझसे मुलाक़ात के ख़ातिर ही तो
दाहिनी ओर सड़क के भी चला करता हूँ
बाल कटवा के 'समर' यूँ तो क़यामत हूँ मैं
लंबे बालों में मगर ख़ूब जँचा करता हूँ
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