प्रेम में ख़ुद को जो मिस्मार नहीं कर सकता - Shakir Dehlvi

प्रेम में ख़ुद को जो मिस्मार नहीं कर सकता
प्रेम उस शख़्स का उद्धार नहीं कर सकता

बैठ कर फिर वो किनारे पे तमाशा देखे
अपनी बाहों को जो पतवार नहीं कर सकता

कुछ शिकायत है तो घर आओ कभी फ़ुरसत में
मैं तमाशा सरे बाज़ार नहीं कर सकता

बेड़ियाॅं खोल दो तलवार थमाओ इसको
एक लाचार पे मैं वार नहीं कर सकता

मेरी मर्ज़ी मैं किसी दाम पे बेचूॅं ख़ुद को
फ़ैसला इसका ख़रीदार नहीं कर सकता

- Shakir Dehlvi
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