पहले कुछ दिन सब कुछ अच्छा लगता है
फिर ये रस्ता देखा-देखा लगता है
दूजी बार मोहब्बत की ये ख़ामी है
इसका हर इक वादा जुमला लगता है
तुझको पाकर मैंने इतना जाना है
क़िस्मत हो तो यारा तुक्का लगता है
आशिक़ के कुछ अपने शिकवे होते हैं
माशूक़ा को बिगड़ा लहजा लगता है
सीधा-सादा पैकर अब इस दुनिया में
सच्चा होने पर भी झूठा लगता है
रफ़्ता-रफ़्ता इक दूजे को जानेंगे
धीरे-धीरे पीना सिर को लगता है
'शान' अभी बातें करने में दिक़्क़त है
बिल्कुल बाज़ू माँ का कमरा लगता है
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