ख़ुशियों की जिस के हाथ में हो आबरू हबीब
इक ऐसे रंग की है मुझे जुस्तुजू हबीब
मुद्दत के बाद लौट के बीनाई आई है
बहने लगा है आँख से मेरे लहू हबीब
जो भी मेरे क़रीब है वो मुझ से दूर है
किस शख़्स की करूँ मैं बता आरज़ू हबीब
ये कौन मुझ को बारहा आवाज़ दे रहा
अब कौन करना चाहता है गुफ़्तुगू हबीब
हर शय दिखाई दे रही है ग़म-ज़दा मुझे
फैला है दर्द आज मेरे चार-सू हबीब
मिलने को तेरे बाद मिले ख़ूब-तर मगर
ज़िद थी मेरी कि तुझ सा मिले हू-ब-हू हबीब
मुद्दत हमारा चाक-ए-जिगर देखता रहा
आ जाए कोई आए करे अब रफ़ू हबीब
रंगत हमारे जिस्म की उड़ती चली गई
पी कर हमारा ख़ून हुए सुर्ख़-रू हबीब
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