आज दम-भर के लिए भी नहीं देखा तूने
आख़िरश कर ही दिया मुझ को पराया तूने
जाने किस बात पे मैं तुझ से ख़फ़ा रहता था
जाने क्या काम मिरा यार बिगाड़ा तूने
हाथ तेरे भी गरेबान तलक आ पहुँचे
जब दिखावा न हुआ रंग दिखाया तूने
ग़ैर को बाद में अपना तू बनाता बेशक
पहले मुझ से तो किया होता किनारा तूने
जान लेने पे तुला है तो रुका है क्यूँ अब
मुझ को मर ने से कई बार बचाया तूने
और लोगों ने तिरा हाथ बटाया ही था
संग तो मेरी तरफ़ फेंका था पहला तूने
मन ही मन में तो रहा करता था थोड़ा ख़ुश मैं
हँसते हँसते हुए वो हक़ भी है छीना तूने
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