साथ देते हैं ऐसी हालत में
मुँह नहीं मोड़ते मुसीबत में
ख़्वाब टूटा तो रोएँगी आँखें
और कुछ भी नहीं हक़ीक़त में
मैं परिंदों से इश्क़ करता था
कब ठहरना था उन की आदत में
उस के जाने से ये हुआ मालूम
और क्या क्या नहीं है क़िस्मत में
तू भी अपनी तरह नहीं निकला
मैं भी कुछ और था हक़ीक़त में
ग़ौर से देखता नहीं कम-ज़र्फ़
आदमी खो गया है औरत में
आप को प्यार चाहिए तो फिर
आप क्यूँ मुब्तिला हैं नफ़रत में
ज़ख़्म देखे तो सब हरे निकले
आज फिर पड़ गया हूँ हैरत में
कुछ नहीं माँगता था मैं रब से
फिर भी खोया रहा इबादत में
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