दूजे जहाँ में मुब्तला रहता हूँ हर घड़ी
मुझ सा तिरे जहान में होगा नहीं कोई
ऐसा भी एक घर है जहाँ शाप है ख़ुशी
ऐसी भी एक माँ है जो माँ भी नहीं बनी
दो-चार लोग ही तो मिरे ग़म-गुसार हैं
बाक़ी जहान सारा मुझे है ये अजनबी
बो कर के बीज लौटा नहीं कोई बाग़बाँ
ता-उम्र कुछ दरख़्त को बंजर ज़मीं मिली
आवाज़ कोई खींच के ले आई इस तरफ़
वर्ना तो जा चुकी थी बहुत दूर ज़िंदगी
ख़ुश-हाल ज़िंदगी थी मैं ख़ुश-हाल था बहुत
इक दम से एक दिन मेरी दुनिया बदल गई
इक रात एक ख़्वाब में मैं डूबता रहा
इक सुब्ह आई रू-ब-रू ता'बीर तैरती
कुछ देर ख़ाकसार से मिल पाई अंदलीब
कुछ देर बाद पेड़ गिरा और मर गई
हर शय तो हो गई थी मुक़ाबिल मिरे मगर
तस्वीर एक बारहा मेरी तरफ़ रही
अच्छा! किसी की आप भी बिगड़ी बनाएँगे
'सोहिल' जनाब आप से अपनी कभी बनी
Read Full