शब-ए-फ़िराक़ में आहों को नींद आ रही है
अजीब है कि तबाहों को नींद आ रही है
मिरी हयात का अब रतजगा नहीं मुमकिन
कि इक समय से निगाहों को नींद आ रही है
सुना रहा हूँ इन्हें लोरियाँ मैं तौबा की
इसीलिए तो गुनाहों को नींद आ रही है
ये कहके टाल दिए हैं मुक़दमे मुंसिफ़ ने
अदालतों में गवाहों को नींद आ रही है
फ़क़ीर ख़ाक पा सोते हैं इत्मिनान के साथ
कहाँ ये देख के शाहों को नींद आ रही है
तमाम उम्र न मंज़िल को इज़्तिराब रहे
हमारे क़दमों में राहों को नींद आ रही है
गिरे ही जाती हैं देखो हमारे काँधों पर
'अमान' आपकी बाहों को नींद आ रही है
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