हवस की सहूलत हटा दे
बदन इश्क़ को रास्ता दे
अधूरा है वो शख़्स लेकिन
जिसे चाहे कामिल बना दे
नहीं आ सकूँगा निकल कर
मुझे मेरे अंदर गिरा दे
तजुर्बे की आँधी से पहले
चराग़-ए-तवक़्क़ो बुझा दे
किताब-ए-हवादिस में आदम
हवाला सहूलत का क्या दे
पयंबर क़लंदर नहीं, बस
हमें ज़ाल-ए-दुनिया, ख़ुदा दे
मरूँगा इसी से मैं इक दिन
मुझे ज़िन्दगी की दुआ दे
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