कमज़र्फ़ मेरे दिल से उतर क्यों नहीं जाते
उतरे हो मेरे दिल से तो मर क्यों नहीं जाते
बेहिस से नज़र आते हो हर बार मुझे तुम
बेहिस भला दुनिया से गुज़र क्यों नहीं जाते
वो फूल जो गुलशन में पड़ा है वहाँ तन्हा
तुम उससे गले लग के निखर क्यों नहीं जाते
महरूम हैं बरसों से ये आगोश हमारी
ख़ुशियों से इसे आन के भर क्यों नहीं जाते
कब तक यूँ भला रोओगे सहरा में शजर तुम
इक अरसा हुआ घर गए घर क्यों नहीं जाते
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