"इंतिज़ार"
जब कभी बारिश
ज़मीं को छूती है
मुझे याद आता है वो वक़्त
जब हम दस क़दम की
दूरी पर रहते थे
दस क़दम की दूरी अब
दो सौ दस मील में बदल गई है
वो सबकुछ बदल गया है
जो सोचा भी नहीं था
क्या तू भी बदल गई है
अगर हाँ तो उन मसाइल को समझ
वक़्त रहते जिनका हल न मिला मुझे
मुझे अफ़सोस भी है कि
एक लफ़्ज़ भी न कहा तुझसे
इतना डर लगता था मुझे
मैं जानता हूँ मोहब्बत
डरने वालों का काम नहीं है
ख़बर तुझे भी है
ख़बर मुझे भी है
मेरी मोहब्बत नाकाम नहीं है
नाकाम तो मैं हूँ दुनिया की नज़र में
कच्चा घर जिसके सामने कच्ची गलियाँ
तेरे शौक़ के लिए यहाँ कुछ भी नहीं है
हाँ मगर ज़रूरत का सब सामान है
काग़ज़, क़लम, शजर, महकती कलियाँ
वो कलियाँ जिन्हें कब से
तेरे एक लम्स की दरकार है
वो शजर जो बूढ़ा हो गया है
उससे कहा था कभी किसी ने
प्यार तो इंतिज़ार है
Read Full