तुम कितना अच्छा गाती हो
फिर नाम से बुलाती हो
अनपढ़ सा बच्चा हूँ सुनो
तुम बच्चों को पढ़ाती हो
इक राह तक रहा हूँ मैं
कितना समय लगाती हो
सब ख़्वाब भूल जाता हूँ
तुम सुब्ह जब जगाती हो
ये किसका ग़ुस्सा है जो तुम
बातें मुझे सुनाती हो
अब याद भी नहीं हो तुम
अब याद भी न आती हो
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