बात करते हुए बे-ख़याली में ज़ुल्फ़ें खुली छोड़ दी
हम निहत्थो पे उसने ये कैसी बलाएँ खुली छोड़ दी
साथ जब तक रहे एक लम्हे को भी रब्त टूटा नहीं
उसने आँखें अगर बंद कर लिए तो बाँहे खुले छोड़ दी
क्या अनोखा यक़ीं था जो उस दिन उतारा गया शहर पर
घर पलटते हुए ताजिरो ने दुकानें खुली छोड़ दी
मेरे क़ाबू में हो कर भी वो इतना सरकश है तो सोचिए
क्या बनेगा अगर मैंने उसकी लगामें खुली छोड़ दी
जिसने आते हुए मेरी तरतीब पर इतने जुमले कसे
उसने जाते हुए मेरे दिल की दराज़ें खुले छोड़ दी
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