कभी मासूम बच्चों को कहीं रोते हुए देखा
किसी उनके क़रीबी को कभी खोते हुए देखा
सियासत तो बहुत होती गहन गंभीर मुद्दों पर
किसी का बोझ नेता को न ही ढ़ोते हुए देखा
किसी उम्मीद की कोई किरण से ही किसी को फ़िर
मुसलसल ही बिखरकर फिर खड़े होते हुए देखा
यहाँ दौलत यहाँ शोहरत कहाँ मिलती किसी को भी
उसे पाने यहाँ पर फिर बहुत खोते हुए देखा
मिज़ाजी को नशा कोई नशे में ही डुबा देता
उसे फिर डूबते गिरते कहीं सोते हुए देखा
Read Full