सितारे तोड़ ही लाने को चल रहा हूँ मैं - zaid alif siddique

सितारे तोड़ ही लाने को चल रहा हूँ मैं
यूॅं है कि आप के साए में ढल रहा हूँ मैं

तुलू-ए-महरे दरख़्शाँ हो ज़िन्दगी में कभी
इसी ख़याल में घर से निकल रहा हूँ मैं

किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
सो अपने वास्ते मंज़िल बदल रहा हूँ मैं

वो एक बात जो मानी नहीं है वालिद की
जुनूँ में शाम से पहले ही ढल रहा हूँ मैं

सदफ़ के साथ जो देखा तो अब्र ने ये कहा
तुम्हारे शहर की जानिब ही चल रहा हूँ मैं

किसी की सिम्त से भेजी गई हैं तस्वीरें
बड़े सुकूत से तन्हा मचल रहा हूँ मैं

वह एक शख़्स जो मेरा रक़ीब लगता है
वो आ गया है सो तेवर बदल रहा हूँ मैं

- zaid alif siddique
5 Likes

More by zaid alif siddique

As you were reading Shayari by zaid alif siddique

Similar Writers

our suggestion based on zaid alif siddique

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari