ये जब जब रात दिन के बाद आती है
जिसे है भूलना वो याद आती है
अँधेरा काटने आता है मुझको तब
किताबों में से इक इमदाद आती है
मुहब्बत बाद ही मुझको हुआ मालूम
मुहब्बत बाद ही उफ़्ताद आती है
सुनाता हूँ तेरे क़िस्से ग़ज़ल में जब
मुअल्लिम से भी अब तो दाद आती है
ग़ज़ल बस क़ाफ़िया-पैमाई थोड़ी है
ग़ज़ल से इश्क़ की रूदाद आती है
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