मिलता उसे है छब मिरा हर ग़म-शनास में
भरती हैं सिसकियाँ सबा भी मेरे पास में
मौजूदगी तो क्या वो नहीं है क़ियास में
लगता मगर कहीं है मिरे आस-पास में
सब कुछ कमाल और नया सा लगा था तब
हर शय है अब हमारी तवज्जोह की आस में
क्या ग़म कि दिन उड़ेगा किसी दिन गिरफ़्त से
गिनती तो हो गई मिरी कब से हिरास में
इक शख़्स काँच सा वो दिए था मुझे पनाह
पुर्ज़े उसी के जज़्ब हैं होश-ओ-हवास में
इतना जुड़ा हुआ न हो दिल ये किसी से भी
यकसाँ तरंग फूट है लाती असास में
मारे बहुत ही हॉर्न जो आया न कोई तो
मैं रेल ले चला हूँ अकेले भड़ास में
हों जल्द ही ये दर्द के सैलाब ख़त्म सब
कुछ जाम अश्क के मियाँ रख लो गिलास में
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