अजनबी तबस्सुम भी यूँ असर करे कोई
प्यार से रफ़ू जैसे ज़ख़्म पर करे कोई
शहद की रखे ख़्वाहिश शान से मगर पहले
एक गुल खिलाने का दिल जिगर करे कोई
परवरिश में जाँ सारी वार दी है जिस माँ ने
हर दफ़ा उसी को क्यूँ दर-गुज़र करे कोई
ना-तवाँ हैं रिश्ते सब टूटने को राज़ी हैं
एक बात हिस्से की जब इधर करे कोई
शोर है मिरी दुनिया ख़ामुशी तुम्हारी है
जोड़कर ज़रा इनको ख़ूब-तर करे कोई
है पसंद में सबकी इक कली शगुफ़्ता पर
ख़ुश्क से गुलों को भी हम-सफ़र करे कोई
हार पर मिरी जो सब हँस रहे ज़माने में
जीत पर मिरी उनको बा-ख़बर करे कोई
दर्द का सिपाही इक मुस्तइद सा रहता है
मेरे साथ चलने की बात अगर करे कोई
क्यूँ है तेग़ लफ़्ज़ों की बात-बात में शामिल
ख़ामुशी से मुझको भी बे-सिपर करे कोई
Read Full