तुम्हें क्या बताऊँ ये कैसी है दुनिया

  - kapil verma

तुम्हें क्या बताऊँ ये कैसी है दुनिया
शराबी के वादों सरीखी है दुनिया

ज़रा सी है मीठी दही और बाक़ी
कसैली है मैली नुकीली है दुनिया

कभी तो किसी शाम जैसी है रंगी
कभी रंग में तर सफ़ेदी है दुनिया

न देखा न जाना गया जो कभी भी
उसी ख़्वाब की तो ख़ुमारी है दुनिया

अमीरों की क़िल्लत फ़क़ीरों की दौलत
समझदार की बेवक़ूफ़ी है दुनिया

जनाजे के गुल या हो शादी की माला
ख़ुदा-ए-चमन की असीरी है दुनिया

कभी है पुरानी कभी है नई सी
तबाही के मामूल जैसी है दुनिया

  - kapil verma

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