इश्क़ में लो चोट खाना आ गया
दर्द को दिल से मिटाना आ गया
सब दुआ माँ की हिफ़ाज़त कर रही
और फ़रिश्ता जी बचाने आ गया
ठोकरों से ज़िंदगी की सीख ली
हाथ दुश्मन से मिलाना आ गया
प्यार भी तो बंदगी है कुछ नहीं
यह परस्तिश भी निभाना आ गया
हमको उल्फ़त के मुबारक ग़म सभी
ज़ख़्म खा कर मुस्कुराना आ गया
दर्द का रिश्ता है क्या इक दोस्त से
दोस्त ग़म में यह बताने आ गया
मैं सुनाऊँ चल तुझे अच्छी ग़ज़ल
सामने चेहरा सुहाना आ गया
ज़िंदगी लो फिर मुकम्मल हो गई
जब से हम को ज़ख़्म खाना आ गया
हम तेरी जब से गली रहने लगे
प्यार का क़िस्सा सुनाना आ गया
वक़्त अच्छा या बुरा ही क्यों न हो
हम को तो हॅंस कर बिताना आ गया
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