लड़कपन की सभी यादों को अपने साथ लाया हूँ
मैं हर इक ख़्वाब की ताबीर लेने आज आया हूँ
कभी तो इम्तिहान-ए-इश्क़ से राहत मिले जानम
लिखी शब भर ग़ज़ल तुझ पर तिरे ही गीत लाया हूँ
किसी इक शख़्स की बातें मुझे सोने नहीं देतीं
बरस बीते मुझे मुँह धोए मैं कल ही नहाया हूँ
इजाज़त ही नहीं दीदार की मुझ को तिरे तो अब
कोई हस्ती कहाँ मेरी कि अब मैं ख़ुद ही ज़ाया हूँ
जिसे बस देखने की आस में जीता था कल तक मैं
दिया पैग़ाम कल उस ने कि मैं तो अब पराया हूँ
मिरी जो शख़्सियत है उस को माँ ने ही तराशा है
मिरा बचपन जहाँ बीता था उस घर का किराया हूँ
रहा हूँ दूर इक अरसा तिरी नज़रों से ये माना
मगर हम-ज़ाद मैं तो आज भी तेरा ही साया हूँ
'अमान' इम्कान अब कोई नहीं है बच निकलने का
सलाम उस ने किया है और मैं फ़र्ज़-ए-किफ़ाया हूँ
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