मेरी अपनी अलग कहानी में
जान अटकी हुई थी जानी में
तन बदन सब सुलग रहा मेरा
आग अब तो लगेगी पानी में
वो मुझे कह रहा यही कब से
लग क़यामत रही हो धानी में
और तारीफ़ मैं करूँ कितनी
है नहीं कुछ जहाँ-ए-फ़ानी में
उसकी ख़ुश्बू सुकून देती है
वैसी ख़ुश्बू न रातरानी में
इश्क़ उसने किया हक़ीक़ी था
छोड़ आई थी बदगुमानी में
अपने हाथों जला दिया सब कुछ
उसकी यादें बची निशानी में
और क्या पूछते हो तुम मुझसे
सब बयाँ है ग़ज़ल के सानी में
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