मेरी अपनी अलग कहानी में - Arohi Tripathi

मेरी अपनी अलग कहानी में
जान अटकी हुई थी जानी में

तन बदन सब सुलग रहा मेरा
आग अब तो लगेगी पानी में

वो मुझे कह रहा यही कब से
लग क़यामत रही हो धानी में

और तारीफ़ मैं करूँ कितनी
है नहीं कुछ जहाँ-ए-फ़ानी में

उसकी ख़ुश्बू सुकून देती है
वैसी ख़ुश्बू न रातरानी में

इश्क़ उसने किया हक़ीक़ी था
छोड़ आई थी बदगुमानी में

अपने हाथों जला दिया सब कुछ
उसकी यादें बची निशानी में

और क्या पूछते हो तुम मुझसे
सब बयाँ है ग़ज़ल के सानी में

- Arohi Tripathi
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