पास रहने को घर नहीं होगा
इससे ज़्यादा सफ़र नहीं होगा
आख़िरी बार चूम लो माथा
फिर इधर से गुज़र नहीं होगा
क़त्ल कर दो मिरी मोहब्बत का
मेरा छलनी जिगर नहीं होगा
आ मिरे लब को चूम ले दिलबर
ज़हर का कुछ असर नहीं होगा
जिस जगह तुमने पाँव रक्खे हैं
उस जगह गुलमोहर नहीं होगा
भूलने में लगा तो इक हफ़्ता
इससे ज़्यादा मगर नहीं होगा
इक कहानी सुनो मोहब्बत की
हिज्र का जिसमें डर नहीं होगा
याद करके तुझे ही ज़िंदा हैं
क्या लगा चारागर नहीं होगा
वो ज़माना था दूसरा साहब
अब सफ़र ये उधर नहीं होगा
ज़िक्र करते नहीं थके हम तो
क्या हुआ जो अगर नहीं होगा
मैं नहीं तुम ही छोड़ दो मुझको
लौट आना अगर नहीं होगा
गाँव कस्बा तुझे तलाशा है
जो बचा हो नगर नहीं होगा
तेरे जाने के बाद याद रहे
अब यहाँ पर शजर नहीं होगा
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