ख़्वाब जलते गए शौक सारा गया
हिज्र हम पर बहुत ही करारा गया
बे-ज़बाँ हो गए ये अलग बात है
मुद्दतों पर तुम्हीं को पुकारा गया
वस्ल में वस्ल भी यूँ गुज़ारा नहीं
हिज्र में हिज्र जैसे गुज़ारा गया
और भी थी हसीं दिलनशीं नाज़नीं
क्यों भला तुम प ही दिल हमारा गया
इश्क़ है कह के याँ इश्क़ के नाम पर
दिल से खेला गया दिल को मारा गया
एक पल को तिरी याद आई थी कल
घंटो शीशे में ख़ुदको निहारा गया
इश्क़ में है मज़ा इश्क़ है इक सज़ा
इश्क़ जिसने किया वो बिचारा गया
ले दे के जिस्म था बच गया मुझ में सो
तन जला के सुख़न को निखारा गया
तुम को,मुझ को,मुहब्बत नचाती रही
खोया कुछ हमने और , कुछ तुम्हारा गया
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