हम से भी इश्क़ का कि इरादा करे कोई
कर के ख़सारा मेरा मुनाफ़ा करे कोई
कुछ वक्त हम प भी कभी ज़ाया करे कोई
ग़म में हमारे ,हम को,हँसाया करे कोई
पूरा हुजूम झूम रहा दिल महल्ले में
ले नाम इश्क़ का कि तमाशा करे कोई
कोई मुझे कभी भी दिखा ही नहीं मगर
आवाज़ मुझ को दे के बुलाया करे कोई
बरसों रहें ख़ुदी से हो कर दूर हम यहाँ
हम से मिलाये हम को हमारा करे कोई
वीरान दिल का शह्र रहे जान कब तलक
गर जाये कोई छोड़ तो आया करे कोई
जब ज़िंदगी तबाह हो अपनी ,तबाह हम
ऐसे में कैसे दिल ये लगाया करे कोई
मेरे सुख़न ग़मों से लबालब भरे रहें
अबकी सितम करे तो ज़ियादा करे कोई
क्या क्या सितम हयात ने ढाहे पता नहीं
क्यों ज़िंदगी से मौत तक़ाज़ा करे कोई
मैं हूँ ज़मीं पसंद उसे कह दो बात ये
हर शब फलक से मुझ को इशारा करे कोई
लब काँपते, ज़बाँ ये मिरी तब फिसलती है
गर सामने से ज़िक्र तुम्हारा करे कोई
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