मिरे इस क़ल्ब में बस इक यही ख़्वाहिश रही है
रहे खुशहाल तेरी ज़िंदगी ख़्वाहिश रही है
मिरी तअ'माम ख्वाहिश हिज्र में ही मर गईं थी
न जाने कैसे मुझ में फिर बची ख़्वाहिश रही है
पढूँ भी और लिक्खूँ भी सनम बस नाम तेरा
सदा हो बस तिरी ही बंदगी ख़्वाहिश रही है
ज़हाँ रौशन रहे हर हाल में हर दम तुम्हारा
कभी छूए न तुझ को तीरगी ख़्वाहिश रही है
कि ग़म के स्याह रातों से रखे तुम को ख़ुदा दूर
तिरे कदमों को चूमें रौशनी ख़्वाहिश रही है
पसंदीदा रहूँ मैं उम्र भर जानम तुम्हारा
तुम्हें भाए न दूजी आशिक़ी ख़्वाहिश रही है
मिरे हालात पर तू रो कहा किसने तुझे ये
तुझे भी मुझ प आये अब हँसी ख़्वाहिश रही है
पिला दो इस ज़हाँ के मयक़दे तअ'माम मुझ को
कभी भी मिट न पाए बे-ख़ुदी ख़्वाहिश रही है
हमारे दरमियाँ कुछ भी न हो,तुम और मैं बस
भुला कर आओ अपनी बे-बसी ख़्वाहिश रही है
ख़ुदा का ख़ैर है मैं बचते आया हूँ अभी तक
कईयों की मिरी जाँ लेने की ख़्वाहिश रही है
बता क्या लेना है इस बार, यूँ आना भला क्यों
कि आख़िरकार अब जाँ क्या तिरी ख़्वाहिश रही है
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