अपने किए की मिल ही गई ये सज़ा मुझे
हासिल हुई न बदले वफ़ा के वफ़ा मुझे
वो कोशिशों के बाद न मेरा हुआ कभी
बस वक़्त ज़ाया करने का है इक गिला मुझे
पामाल रस्तों पर मिले रहबर उसे कई
संगीन जब सफ़र हुआ उसने चुना मुझे
आया हूँ सोच कर कि तेरी आँखों में रहूँ
इतना तो कर कि अब न नज़र से गिरा मुझे
इकरार कर के हर दफ़ा इनकार करता है
मेरी है इल्तिजा कि हुनर ये सिखा मुझे
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