सिलसिला दरमियाँ जब रहा ही नहीं
हाल-ए-दिल उसको भी फिर कहा ही नहीं
कैसे कर लूँ यक़ीं तेरी हर बात पे
अश्क इक आँख से जब बहा ही नहीं
हर दफ़ा बच निकलता है इल्ज़ाम से
मोतबर क़ाज़ी वो अब रहा ही नहीं
ज़िन्दगी का सफ़र यूँ हुआ राएगाँ
मरहला ग़म का वो अब रहा ही नहीं
फूँक कर आशियाँ तू न अफ़सोस कर
बाक़ी दिल में गिला जब रहा ही नहीं
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