सभी लम्हात इस हालात में कैसे लगेंगे
मेरे ये हाथ तेरे हाथ में कैसे लगेंगे
पता है इस जनम का और अगले का पता क्या
बता फिर साथ हम बारात में कैसे लगेंगे
पड़ेगी धूप तो सूरजमुखी बनकर खिलेंगे
तो हम दोनों बता बरसात में कैसे लगेंगे
हाँ आइस-क्रीम खाऍंगे टहलने जब चलेंगे
तो हम चलते हुए फुट-पाथ में कैसे लगेंगे
सफ़र इस ज़िंदगी का है तो केवल मौत तक का
मगर उस पार दोनों साथ में कैसे लगेंगे
As you were reading Shayari by Divya 'Kumar Sahab'
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