मैं तन्हा नहीं हूँ चले जाइएगा
अगर हूँ बताओ तो क्या कीजिएगा
मैं ख़ुश हूँ बहुत ही नए शहर में अब
मुझे फिर रुलाने चले आइएगा
ज़मीं की तपन बढ़ रही है बहुत ही
चलें आप बारिश ही बन जाइएगा
कमी आपको गर हुई प्यार की तो
मुझे आप अपनी तरफ़ पाइएगा
ग़ज़ल इल्म तो बहर का माॅंगती है
न आए तो पहले उसे सीखिएगा
उदासी भरी ज़िंदगी चल रही है
अँधेरे से यानी न घबराइएगा
हमे इल्म है हुस्न और बेवफ़ा का
न हमसे कोई खेल फिर खेलिएगा
हमे आप के राज़ मालूम हैं सब
ललित की ज़बाँ को न खुलवाइएगा
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