दिल में जब उसके उतर जाता हूँ
और भी मैं तो निखर जाता हूँ
राब्ता कोई नहीं है ग़म से
साथ क्यों ग़म के उधर जाता हूँ
रोज ही टूट तो जाता हूँ पर
देख तुझको तो सँवर जाता हूँ
उसने मुझको तो कहा पत्थर दिल
उसकी हालत से तो डर जाता हूँ
तुम तो इक फूल हो मैं भँवरा हूँ
मिल न पाया तो बिखर जाता हूँ
हर सर-ए-शाम के होते ही मैं
यार फिर ख़ुद ही बिखर जाता हूँ
दोस्त बैचेन जहाँ से होकर
ख़ाना-ए-बाग़ ठहर जाता हूँ
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