मुश्किलों में जो पल रहा होगा - Lalit Mohan Joshi

मुश्किलों में जो पल रहा होगा
वो ज़माने में फल रहा होगा

चोट पर चोट करने वाला वो
तो फ़क़त इक अज़ल रहा होगा

सह गया ज़ख़्म को यहाँ हँसकर
वो यक़ीनन कँवल रहा होगा

जो लड़ा प्यार के लिए शायद
वो बहुत ही कुशल रहा होगा

अपने माज़ी से जो उदासी है
अब तो उससे निकल रहा होगा

याद में अपने दोस्त की वो फिर
लिख नई इक ग़ज़ल रहा होगा

इल्म रखता है बहर का पूरा
सो लिखे पर अटल रहा होगा

वो जगाता है रात ख़ुद ऐसे
जैसे क़िस्मत बदल रहा होगा

आसमाँ देखने से क्या होगा
जब जहाॅं ही बदल रहा होगा

ऐब उस में नहीं है कुछ भी अब
यूँ ललित फिर अछल रहा होगा

- Lalit Mohan Joshi
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