दुख दर्द फिर नसीब हो गया था
जैसे मेरा नसीब सो गया था
ख़ुशबू से उसकी यार मैं था ज़िंदा
पत्थर सा वरना मैं तो हो गया था
कल देर तक था चाँद मेरी छत पर
मैं बिन गए ही छत पे सो गया था
वो बेवफ़ा हुआ तो क्या कहूँ मैं
पागल मगर कहीं मैं हो गया था
ख़त उसने वो मिरा दिया न खोला
यादों में क्यूँ मगर मैं खो गया था
मिसरे पे पहले दाद वाह सब पर
दूजे पे हर कोई तो रो गया था
जादू ये मेरा था या उसका था ये
हर कोई अब यहाँ तो रो गया था
महफ़िल में आ गया मुझे वो सुनने
फिर रोते घर की ओर को गया था
अब तो 'ललित' सुनाए भी तो क्या ही
हर कोई याद में यूँ खो गया था
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