ज़िंदगी ज़िंदगी नहीं लगती
अब कोई शय भली नहीं लगती
जिसको पाने की जुस्तजू है मुझे
हाथ बस इक वही नहीं लगती
उसको अफ़सर पसंद आते हैं
और मेरी नौकरी नहीं लगती
पहले लगती थी ख़ूब लगती थी
आँख अब इक घड़ी नहीं लगती
कितनी कलियाँ हवस के नाम हुई
आग लेकिन बुझी नहीं लगती
इश्क़ लगता है खेल बच्चों का
दिल्लगी दिल्लगी नहीं लगती
क़हक़हों का सबब उदासी है
तुम मुझे मस्खरी नहीं लगती
पहले लगती थी कुछ कमी मुझको
अब किसी की कमी नहीं लगती
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