आग से पूछ रौशनी क्या है
ग़ौर से देख ज़िन्दगी क्या है
ढूँढ कोई बिलखती बूढ़ी माँ
और फिर सोच बेबसी क्या है
अपने ही दिल का ख़ून ख़ुद ही पी
पूछना तब ये शायरी क्या है
कितनी नदियों से प्यासा लौटा हूँ
मैं समझता हूँ तिश्नगी क्या है
मैंने देखा था माँ को ख़ुश होते
तब मैं समझा था ये ख़ुशी क्या है
उलझे लोगों से भी मिला हूँ मैं
जानता हूँ कि सादगी क्या है
होंठ आँखें वो मुस्कुराहट सब
और बतलाऊँ क़ीमती क्या है
फ़ाइलें गिन बलात्कारों की
तब तू समझेगा आदमी क्या है
एक गाड़ी अभी जो छूटी है
ये बताती है आख़िरी क्या है
मैंने मीरा को रोते देखा है
मैं समझता हूँ आशिक़ी क्या है
ज़िन्दगी चल मिलेगा फिर कोई
ऐसी बातों पे रूठती क्या है
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