आग से पूछ रौशनी क्या है

  - Praveen Sharma SHAJAR

आग से पूछ रौशनी क्या है
ग़ौर से देख ज़िन्दगी क्या है

ढूँढ कोई बिलखती बूढ़ी माँ
और फिर सोच बेबसी क्या है

अपने ही दिल का ख़ून ख़ुद ही पी
पूछना तब ये शायरी क्या है

कितनी नदियों से प्यासा लौटा हूँ
मैं समझता हूँ तिश्नगी क्या है

मैंने देखा था माँ को ख़ुश होते
तब मैं समझा था ये ख़ुशी क्या है

उलझे लोगों से भी मिला हूँ मैं
जानता हूँ कि सादगी क्या है

होंठ आँखें वो मुस्कुराहट सब
और बतलाऊँ क़ीमती क्या है

फ़ाइलें गिन बलात्कारों की
तब तू समझेगा आदमी क्या है

एक गाड़ी अभी जो छूटी है
ये बताती है आख़िरी क्या है

मैंने मीरा को रोते देखा है
मैं समझता हूँ आशिक़ी क्या है

ज़िन्दगी चल मिलेगा फिर कोई
ऐसी बातों पे रूठती क्या है

  - Praveen Sharma SHAJAR

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