तुम्हें ज़िंदगी से शिकायत नहीं है
तो यानी किसी से मुहब्बत नहीं है
मुझे भी ख़बर है ज़माने में ग़म हैं
मगर तेरे दर की ज़रूरत नहीं है
मुझे ऐसे ज़िन्दाँ में रक्खा गया है
जहाँ जेलरों को हिफ़ाज़त नहीं है
किसी रोज़ तुम भी बदल जाओगे ना
तुम्हें भी ख़ुदा से जो निस्बत नहीं है
तुम्हारी भी आँखें हैं क्यूँ उसके जैसी
कि इन में भी क्यूँ मेरी सूरत नहीं है
दिखा कर मुझे ख़्वाब अब कह रहे हो
कि ये ख़्वाब है बस हक़ीक़त नहीं है
कभी कर के देखो समझ जाओगे तुम
ये बस इश्क़ है कोई आफ़त नहीं है
कि इज़्ज़त से मुझको नवाज़े है कोई
मैं शायर मुझे इसकी आदत नहीं है
किसी रोज़ मुझको भी चाहत से देखो
मेरी और कोई भी चाहत नहीं है
तो यानी वो कोई नया ढूँढती है
अकेले में जीने की हिम्मत नहीं है
मुझे भी शजर छाँव में बैठना है
फ़क़त धूप ही मेरी क़िस्मत नहीं है
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