मुझे हैरत नहीं होती, मुझे अब से नहीं हैरत
ख़ुदा भी क्या करे बोलो, मुझे रब से नहीं हैरत
उसे भी देख कर अनजान बनता फिर रहा हूँ मैं
उसे जब से भुलाया है, मुझे तब से नहीं हैरत
बड़ी इतनी नहीं ये बात पर अब जान लो ये तुम
बड़े हैरान हैं वो ख़ुद, मुझे जब से नहीं हैरत
मकीं रहते यहाँ पर थे, मकाँ लेकिन बचा है अब
नहीं है याद खुद मुझको, मुझे कब से नहीं हैरत
मुझे छोड़ा मिरे ही दोस्त-यारों ने, अज़ीज़ों ने
मुझे अपनों से हैरत है , मुझे सब से नहीं हैरत
As you were reading Shayari by Piyush Mishra 'Aab'
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