अपने ग़म को मैं यूँ बढ़ाता हूँ
उससे मिलने ख़ुशी से जाता हूँ
एक दीवार गिरती जाती है
एक तस्वीर जो हटाता हूँ
ये भी कुछ कम नहीं कि सबको मैं
काम पड़ने पे याद आता हूँ
कोई देखे उदास हूँ कितना
जब उदासी में मुस्कुराता हूँ
चुप सा रहने लगा हूँ लोगों में
शोर तन्हाई में मचाता हूँ
मिलना मुमकिन नहीं हक़ीक़त में
सो उसे ख़्वाब में बुलाता हूँ
यूँ तो डरता नहीं ज़माने से
वो जो देखे तो काँप जाता हूँ
मुझको वो भी डुबा के जाते हैं
मैं जिन्हें तैरना सिखाता हूँ
सर पे चढ़ती है जब मेरे दुनिया
माँ के कदमों में बैठ जाता हूँ
मैंने क्या शौक़ पाल रक्खे हैं
इश्क़ करता हूँ दिल जलाता हूँ
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