यूँ ज़िंदगी में रौशनी लाता रहा हूँ मैं
अक्सर उसी के ख़्वाब सजाता रहा हूँ मैं
ताउम्र उसको ठीक से इक ख़त न लिख सका
बस काग़ज़ों की नाव बनाता रहा हूँ मैं
जिस बात का जवाब नहीं वो सवाल कर
धड़कन किसी के दिल की बढ़ाता रहा हूँ मैं
माना कि इक ख़राश नहीं जिस्म पे मेरे
इस रूह को तो छत से गिराता रहा हूँ मैं
देकर सभी को उनकी मोहब्बत का वास्ता
टूटे दिलों को फिर से मिलाता रहा हूँ मैं
मुझसे भी कोई राह कब अंजान रह सकी
हर सम्त उसको ढूँढने जाता रहा हूँ मैं
सबकी ख़ुशी में ख़ुश हुआ अपनी ख़ुशी समझ
अपने ग़मों को सबसे छुपाता रहा हूँ मैं
आवाज़-ए-इश्क़ दब गई नफ़रत के शोर में
ख़ामोशियों को सुनता सुनाता रहा हूँ मैं
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