दिल में जो बात थी उस बात को कह सकते थे
तुम अगर चाहते हम साथ में रह सकते थे
इसलिए हमने बिछड़ने को ही बेहतर समझा
आपके और मज़ालिम नहीं सह सकते थे
आपको हज़रत-ए-दिल इल्म नहीं है इसका
आप तूफ़ान-ए-मुहब्बत में भी बह सकते थे
आज गर तैश में आ जाते शजर और साहिल
शहर के ऊँचे मकानात ये ढह सकते थे
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