ख़त उसे भेज के पैग़ाम ये पहुँचाना है
तेरे जाने से मेरे शहर में वीराना है
लाम से लफ़्ज़ सुनो ये से यहाँ होता है
बे से अब बाद शुरू करके अलिफ़ लाना है
दिल के जज़्बात हुआ करते हैं शेरों में बयाँ
शायरी का भी ये फ़न यार कमाल आना है
इश्क़ में कोई वफ़ादार नहीं हो सकता
इश्क़ करके मियाँ मैंने तो यही जाना है
मैं फ़क़त तन्हा नहीं उसका दीवाना यारों
जिसने देखा है उसे उसका वो दीवाना है
मजलिस-ए-हिज्र बपा रहती है इसमें हरदम
दिल मेरा दिल नहीं यादों का अज़ाख़ाना है
सामने मौलवी साहब के सुनो लफ़्ज़-ए-क़ुबूल
आपको तीन दफ़ा बैठ के दोहराना है
जब से देखा है सुनो दिल से ये आती है सदा
आपको पाना है बस पाना है बस पाना है
बिन मोहब्बत के नहीं कुछ भी ज़माने में शजर
उससे मिलना है उसे मिलके ये समझाना है
Read Full