हँसी लबों पे सजा कर कलाम करना है
मिरी हयात का क़िस्सा तमाम करना है
तख़य्युलात का अब इख़्तिताम करना है
किनारा कर के मुहब्बत से नाम करना है
किसी की आँखों ने नींदे हराम करनी हैं
किसी की ज़ुल्फ़ों ने दिल को ग़ुलाम करना है
लबों पे उसके तबस्सुम हो सर पे चादर हो
मुसव्विरों ये फ़क़त तुमको काम करना है
ख़ुशी के साथ बसर करने दो ये दिन मुझको
कि इश्क़ विश्क़ मियाँ काफ़-लाम करना है
हमारे नाम ने इक अरसे बाद लगता है
तुम्हारे लब की ज़मीं पर क़याम करना है
जो नौजवान भी ज़ीनत बने हैं सहरा की
हर इक का मैंने बड़ा एहतिराम करना है
हसीन लड़की तुम्हारी हसीन आँखों से
हाँ बादा-ख़्वार को अब नोश जाम करना है
क़सम उठाई है रंज-ओ-अलम ने हर लम्हा
तवाफ़-ए-ख़ाना-ए-दिल सुब्ह-ओ-शाम करना है
शब-ए-विसाल को हम कर के मुख़्तसर निकले
शब-ए-फ़िराक़ का कुछ इंतिज़ाम करना है
मिटा के बैर अदावत को बुग्ज़-ओ-नफ़रत को
जहाँ में अम्न का पैग़ाम आम करना है
ये दिल के टुकड़े उठाने हैं ख़्वाब देखने हैं
तिरे बग़ैर मुझे कितना काम करना है
किसी के दर पे झुकाना है जा के सर अपना
किसी के नाम को तकिया कलाम करना है
सजा के पलकों पे आँसू यूँ मुस्कुराना है
ग़मों में जश्न का भी इंतिज़ाम करना है
तुम्हारे दिल पे हुकूमत तो कर चुका मैं अब
तुम्हारे शहर को बस हम-कलाम करना हैं
वो दिल लगी करे सहरा की नज़्र हो जाए
जिसे भी अपना ज़माने में नाम करना है
न हक़ किसी का दबे नईं किसी का घर उजड़े
वतन में अपने ये नाफ़िज़ निज़ाम करना है
हमें बढ़ानी है मन्नत शजर मुहब्बत की
मज़ार-ए-क़ैस पे आख़िर सलाम करना है
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