हैरान हैं जहान ये क्या कर रहा हूँ मैं
इक बे-वफ़ा से हाय वफ़ा कर रहा हूँ मैं
तस्बीह में जो विर्द तेरा कर रहा हूँ मैं
दुनिया समझ रही है ख़ता कर रहा हूँ मैं
रस्म-ए-क़बीला ऐसे अदा कर रहा हूँ मैं
क़ातिल को अपने आब अता कर रहा हूँ मैं
है मजलिस-ए-फ़िराक मेरे क़ल्ब में बपा
धड़कन के ज़रिए आह-ओ-बुका कर रहा हूँ मैं
जी चाहता है चूम लूँ मैं गुल की पत्तियाँ
ख़ारों की थोड़ी सारी हया कर रहा हूँ मैं
बाद-ए-फ़िराक-ए-यार सदा मुस्कुराए तू
दिन रात रब से ये ही दुआ कर रहा हूँ मैं
गाफिल नहीं हूँ देखो इबादत से एक पल
हर साँस में तुम्हारी सना कर रहा हूँ मैं
तुमको सवार करते हुए बा खुदा सनम
लगता है जान तन से जुदा कर रहा हूँ मैं
एक बे वफ़ा के वास्ते देखो ज़रा 'शजर'
ये ज़िंदगानी अपनी फना कर रहा हूँ मैं
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