इक कबूतर के गुटरगूँ सा फ़साना मेरा
मेरी आवाज़ से, है हाल बता क्या मेरा
सिर्फ़ सूरत ही भुलाने से न ग़म कम होगा
चाहता हूॅं मैं भुला दूॅं के कोई था मेरा
अब तो बस ज़िंदा ही रहना है दिखावे के लिए
हो गया ख़त्म तेरे जाते ज़माना मेरा
मेरी बर्बादियों का मुझको भी था अंदाज़ा
तेरे हाथों में मुक़द्दर जो लिखा था मेरा
दफ़्तर–ए–ज़िंदगी में ऐसे उलझ बैठा हूॅं
अब तो कम हो गया घर अपने ही जाना मेरा
याद तुमको भी जब आएगा तो तुम रोओगी
वो हॅंसाना वो चिढ़ाना वो मनाना मेरा
मेरे रोने का है मतलब कि मुझे ग़म चहिए
कोई समझा ही नहीं इतना इशारा मेरा
इतनी आसानी से मैं तुझको भुलाऊॅंगा नहीं
मुझको अफ़सोस रहेगा तू कभी था मेरा
जैसे कोई माँ तड़प उठती है बच्चे के बिना
शा'इरी से भी कुछ ऐसा ही है रिश्ता मेरा
मुझसे तुम पूछते हो कौन ‘सफ़र’ है आख़िर
तुमको मालूम नहीं तुम भी हो हिस्सा मेरा
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