हम ने उन को यूँ उतारा, इक ग़ज़ल की शक्ल में
रात भर इकटक निहारा, इक ग़ज़ल की शक्ल में
बुझ गया था सुब्ह तक, बातों से मेरी ऊब कर
टिमटिमाता वो सितारा, इक ग़ज़ल की शक्ल में
भूल जाना हर जिरह को, हर गिरह को खोलना
याद करना बस दोबारा, इक ग़ज़ल की शक्ल में
अनपढ़ों की भीड़ से, शब भर उलझता ही रहा
ख़्वामख़ाह ये दिल बेचारा, इक ग़ज़ल की शक्ल में
जल गया ख़ुर्शीद और, महताब भी मद्धम हुआ
ज़िक्र आया जब तुम्हारा, इक ग़ज़ल की शक्ल में
बज़्म में 'अल्फ़ाज़' यूँ , बे-बह्र बहते चल दिये
तुमने जब उनको पुकारा, इक ग़ज़ल की शक्ल में
As you were reading Shayari by Saurabh Mehta 'Alfaaz'
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