दुआ करता हूँ मैं इस दौर का मंज़र बदल जाए
सितमगर ख़ुद ही अपनी आग में चुप चाप जल जाए
मैं दुश्मन को बुरा कहने से पहले सोच लेता हूँ
कहीं ऐसा न हो फिर दोस्त से बेहतर निकल जाए
सजा ले ख़ुद को तू फौरन हसीं की धूप से वरना
जवानी का जो सूरज है अचानक ये न ढल जाए
ग़लत ख़बरों को सुनता हूँ छलक जाते हैं आँसू ख़ुद
कहीं ऐसा न हो फिर मुल्क में दहशत मचल जाए
मेरे नज़दीक अच्छी मौत है उस शख़्स की जिसके
ज़बाँ पे ज़िक्र रब जारी रहे और जाँ निकल जाए
तक़ाज़ा होश-मंदी का न मर दुनिया की दौलत पर
न दौलत ज़र ज़मीं जाए फ़क़त तेरा अमल जाए
अमीरों तुम न इतराओ कभी भी अपनी दौलत पर
अजल इक नाग है समझो न जाने कब निगल जाए
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