मैं तो इज्ज़तदार समझा था उसे अपनी तरह
और बदकिरदार समझा वो मुझे अपनी तरह
दोनों का है अपना अपना फ़लसफ़ा-ए-ज़िन्दगी
जिसको जैसा जो लगा समझा उसे अपनी तरह
As you were reading Shayari by Waseem Siddharthnagari
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