अभी हमारा है आएगा पर तुम्हारा भी
उठाना होगा तुमको इश्क़ में खसारा भी
गुरूर करते हो अपना जिसे बनाके तुम
वो शक्स था ज़माने में कभी हमारा भी
बहाव ए इश्क से कैसे न बच निकलती वो
मिरा जो प्यार था साहिल का था पियारा भी
अब उनके बिन गुज़ारी जारही है ये बद-ज़ीस्त
के जिनके बिन हमें इक पल न था गवारा भी
जहां भी देखा उसको मुस्कुरा दिए हर वक़्त
फिर उसको याद करके ज़ख्म को उभारा भी
नज़र भी फैर लेते हैं वो देखकर मुझको
कभी यूं था मै जिनका जान से पियारा भी
मिरे ज़वाल के मनसूबे सोचते हैं वो
जो दे रहें हैं बाहर से मुझे सहारा भी
करीब आके पहले दिल धड़क उठाया मिरा
फिर उसने दूर जाके मुझसे मुझको मारा भी
इस इश्क़ के नशे ने मेरी रूह को अहमद
मुनाफे के बराबर ही दिया खसारा भी
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