रो के कुछ देर सँभल जाते हैं
अश्क उदासी को बहा लाते हैं
बात दिल की नहीं कह पाती ज़बाँ
अश्क बरवक़्त चले आते हैं
हमें मालूम नहीं कुछ भी अभी
है किधर और किधर जाते हैं
दाइमी दुख नहीं होता कोई
ज़ख़्म कैसे भी हों भर जाते हैं
दिल में बसते हैं ग़मों के आसेब
और नग़्में ख़ुशी के गाते हैं
इस जहाँ की है यही रीत सहर
लोग आते हैं चले जाते हैं
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