अपने जज़्बात दबाते हुए लड़कों का दुख
रात दिन दर्द कमाते हुए लड़कों का दुख
इश्क़ की रस्म निभाते हुए लड़कों का दुख
ख़ूब है जान गँवाते हुए लड़कों का दुख
इश्क़ की आग ने समझा न कभी भी अब तक
अपने दामन को जलाते हुए लड़कों का दुख
हमने देखा है सुबुकते हुए हँस देता है
हिज्र का बोझ उठाते हुए लड़कों का दुख
फूट कर रोने लगे देखते ही चारा-गर
ज़ख़्म सीने के छुपाते हुए लड़कों का दुख
मय-कदे जा के ही पाता है सुकूँ ऐ लोगों
जाम पर जाम लड़ाते हुए लड़कों का दुख
आप को दाद से मतलब है न समझेंगे आप
शेर पे शेर सुनाते हुए लड़कों का दुख
और इक रोज़ निगल जाता है ये लड़कों को
इश्क़ की क़िस्त चुकाते हुए लड़कों का दुख
हुस्न क्या जाने उसे अपनी ख़ुशी से मतलब
ज़िम्मादारी को उठाते हुए लड़कों का दुख
मय-कदे में थे जो पैमाने सभी टूट गए
दर्द की बज़्म सजाते हुए लड़कों का दुख
हुस्न समझा ही नहीं रोज़-ए-अज़ल से अब तक
चाँद को पास बुलाते हुए लड़कों का दुख
कोई दीवाना ही पहचान सका है साहिल
ख़ाक सेहरा में उड़ाते हुए लड़कों का दुख
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